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नमस्कर दोस्तों मै आप सभी का इस नए लेख top 20 freedom fighters of India के बारे मे विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।इस लेख मे आपको top 20 freedom fighters of India के अलावा, इनसे जुडे कुछ महत्वपूर्ण question and answer की Pdf भी free मे provide कराएँगे।
- List of Top 20 freedom fighters of India
- Top 20 freedom fighters of India [भारत के Freedom Fighters]
- Top 20 freedom fighters of India [01 मंगल पाण्डे [ Mangal Pandey]]
- Top 20 freedom fighters of India [ 02 वीर सावरकर]
- Top 20 freedom fighters of India [03 क्रांतिकारी राजगुरु]
- Top 20 freedom fighters of India [04 सरदार भगत सिंह]
- Top 20 freedom fighters of India [05 सुभाष चन्द्र बोस]
आगर आप Army Open Bharti, Railway Bharti, RRB, UPSC, आदि परिक्षाओ की तैयारी कर रहे है तो top 20 freedom fighters of India आपको पता होना बहुत ही जरुरी है। top 20 freedom fighters of India से संबंधित बहुत से प्रश्न इन exams पुछे जाते है।
List of Top 20 freedom fighters of India
यहां हमारे पास top 20 freedom fighters of India की list है। जिसके अंदर उन सभी Top 20 freedom fighters of India का नाम दिया गया है और नीचे इनके बारे मे पूरा विवरण दिया गया है।
01 | मंगल पाण्डे |
02 | क्रांतिकारी राजगुरु |
03 | रामप्रसाद बिस्मिल |
04 | वीर सावरकर |
05 | अशफाकउल्ला खाँ |
06 | मदनलाल ढीगरा |
07 | सरदार भगत सिंग |
08 | सुभाष चन्द्र बोस |
09 | सुखदेव |
10 | खुदीराम बोस |
11 | लाला लाजपत राय |
12 | बाल गंगा धर तिलक |
13 | विपीन चन्द्र पाल |
14 | श्यामा प्रसाद मुखर्जी |
15 | गोपाल कॄष्ण गोखले |
16 | ज्योतिराव फुले |
17 | गनेश शंकर विधार्थी |
18 | खान अब्दुल गफ्फार खाँ |
19 | सरदार बल्लब भाई पटेल |
20 | नाना साहब |
Top 20 freedom fighters of India [भारत के Freedom Fighters]
भारत के top 20 freedom fighters का पूर्ण विवरण इस प्रकार है।
Top 20 freedom fighters of India [01 मंगल पाण्डे [ Mangal Pandey]]
01 मंगल पाण्डे [ Mangal Pandey]
हमारी इस top 20 freedom fighters of India की सुची मे नाम सबसे पहले आता है मंगल पाण्डे सन् 1857 ई. की क्रांति का जनक था। वह मेर के एक गाँव में रहने वाला ब्राह्मण जाति का युवक था। घर की गरीबी और पास से परेशान होकर युवक मंगल पाण्डे को फौज की नौकरी करनी पड़ी। सेना में सिपाही की नौकरी करते हुए उसे सात रुपये प्रति माह का वेतन मिल था। अभी मंगल पाण्डे को फौज की नौकरी करते हुए केवल दो ही महीने हा थे कि उसके घर में रुपयों का अभाव होने लगा।
इससे मंगल पाण्डे को चिंता होने लगी। उसने अपने वेतन का अधिकांश भाग अपने घर भेजने का निश्चय कर लिया। एक दिन मंगल पाण्डे ने मेरठ छावनी में अपने फौजी दोस्तों के मुख से तरह-तरह की बातें सुनीं। किसी ने कहा कि अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं। कोई कहता था कि वे हमको यहूदी और ईसाई बनाना चाहते हैं।
कुछ मित्रों का कहना था कि अंग्रेज अधिकारियों द्वारा हिन्दुस्तानी सैनिकों को यह लालच दिया जा रहा है कि वे बर्मा या इंग्लैण्ड चले जाएँ। मंगल पाण्डे विशुद्ध ब्राह्मण था। उसका कहना था कि समुद्र पार जाने से हमारा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा, इसलिए हम अपना देश छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे। अपने सैनिक मित्रों से मंगल पाण्डे को मालूम हुआ कि नई बंदूकों के कारतूसों में चिकनाहट के तौर पर सूअर और गाय की चर्बी का प्रयोग किया जा रहा है।
ऐसा करके अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देना चाहते हैं। थोड़ी ही देर में सारी मेरठ छावनी में यह बात आग की तरह फैल गयी। इसके बाद दमदम और बैरकपुर छावनी में भी यह बात फैली। मेरठ और बैरकपुर छावनी के सभी भारतीय सैनिकों ने नए कारतूस लेने से मना कर दिया। मंगल पाण्डे ने सभी सैनिकों को इकट्ठा करके समझाया-“अब चुप बैठने की जरूरत नहीं है। मे होगा।” मंगल पाण्डे अफसर के ऊपर निश गया। । top 20 freedom fighters of India
अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट करना चाहते हैं। इनको सबक सिखाना पाण्डे ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत खड़ी कर दी और अंग्रेज ऊपर निशाना साधकर गोली चला दी। लेकिन लेफ्टिनेंट बॉग बच ने अपनी पिस्तौल निकालकर मंगल पर निशाना लगाया लेकिन उसका चक गया और मंगल साफ बच गया।
मंगल ने झट अपनी तलवार निकाल मलेफ्टिनेंट बॉग भी अपनी तलवार लेकर लड़ने लगा। अन्ततः मंगल ने बॉग को जमीन पर गिरा दिया। इतने में सार्जेन्ट ह्यूलन वहाँ आ गया। मंगल पाण्डे ने हयूलन को भी जमीन पर गिरा दिया। तभी हथियारों से लैस जनरल हैवलॉक वहाँ आ गया। मंगल पाण्डे को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर अंग्रेजों की अदालत में मुकदमा चलाया गया और मंगल पाण्डे को फाँसी की सजा सुनाई गई।
8 अप्रैल, 1858 ई. को सन् 1857 ई. के इस स्वाधीनता सेनानी को फाँसी दे दी गई। मंगल पाण्डे की पहली गोली से, भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के प्रति बगावत जागी और आगे चलकर इस विद्रोह ने देशव्यापी क्रांति का रूप ले लिया। इस पकार हम कह सकते है कि वह Top 20 freedom fighters of India की सूची मे आने के काबिल है।
Top 20 freedom fighters of India [ 02 वीर सावरकर]
02 वीर सावरकर
तो दोस्तो इस top 20 freedom fighters of India की सुची मे No. 02 पर आते है वीर सावरकर, के बचपन का नाम ‘तात्याराव’ था। इनका जन्म १ सन् 1883 ई. में महाराष्ट्र के नासिक जिले के भगूर नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर तथा माता का नाम राधाबाई था। वीर सावरकर के बड़े भाई का नाम गणेश सावरकर तथा छोटे भाई का नाम नारायण सावरकर था। विनायक से छोटी एक बहिन थी। उसका नाम मैना था। जब वीर सावरकर छोटे से थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया।
विनायक को गाँव के स्कूल में भर्ती करा दिया गया लेकिन स्कूल में विनायक (वीर सावरकर) ने बच्चों की एक सेना बना ली थी। ये बच्चे शिवाजी और महाराणा प्रताप को अपना आदर्श मानते थे। पाँचवीं कक्षा पास करने के बाद विनायक को अंग्रेजी शिक्षा के लिए नासिक के एक स्कूल में भर्ती कराया गया। यहाँ विनायक ने देशभक्ति के साहित्य का अध्ययन करना शुरू किया।
वे केसरी समाचार पत्र पढ़कर राष्ट्रीय आंदोलन की जानकारी प्राप्त करने लगे। वे वीर रस की कविताएँ लिखने लगे। उनकी राष्ट्रभक्ति की कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। सन् 1897 ई. में पूना में प्लेग रोग फैला। प्लेग के कारण पूना के लोग बेमौत मरने लगे लेकिन अंग्रेज सरकार ने प्लेग पर काबू पाने का कोई कारगर कदम नहीं उठाया।
यह देख वीर सावरकर को क्रोध आया। चाफेकर बंधुओं ने अंग्रेजी प्लेग कमिश्नर तथा एक अन्य अधिकारी को गोलियों से भून दिया था। जब चाफेकर बंधुओं को फाँसी दिए जाने की खबर वीर सावरकर को मालूम हुई तो वे आक्रोश में आ गए। 22 जनवरी, 1901 ई. में इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया का देहांत हआ।
रानी को श्रद्धांजलि देने के लिए देश-भर में सभाएँ होने लगीं। वीर सावरकर ने अपने द्वारा गठित ‘मित्र मेला’ संगठन द्वारा इसका विरोध किया। 22 अगस्त, 1906 में वीर सावरकर ने पूना के बीच बाजार में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। सन 1908 में वीर सावरकर ने मराठी भाषा में ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ पुस्तक की रचना की।
लंदन में सन् 1910 में वीर सावरकर को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया। उन पर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध षड्यंत्र करने का आरोप था। जब उन्हें समुद्री जहाज से भारत ले जाया जा रहा था, तब वीर सावरकर पुलिस को चकमा देकर भाग निकले। लेकिन बाद में उनको पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।उन पर मुकद्दमा चलाकर दो जन्मों की अर्थात् 50 वर्षों की काला पानी की सजा सुनाई। अंडमान की जेल में वीर सावरकर ने अनेक यातनाएँ सहीं।
दस वर्ष अंडमान की जेल में रहने के बाद उन्हें 1921 ई. में भारत लाकर रत्नागिरी में नजरबंद किया गया। सन् 1937 ई. में उन्हें नजरबंदी से मुक्ति दे दी गयी। भारत को आजादी मिलने के बाद सन् 1965 ई. में वीर सावरकर बीमार पड़ गए। 26 फरवरी, 1966 ई. को उनकी हालत अत्यंत बिगड़ गयी। दोपहर 11 बजे उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँस ली।
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Top 20 freedom fighters of India [03 क्रांतिकारी राजगुरु]
03 क्रांतिकारी राजगुरु
क्रांतिकारी राजगुरु हमारी इस top 20 freedom fighters of India सोची मे No.03 पर आते है क्रांतिकारी राजगुरु मराठा सरदार राजगुरु ने सन् 1909 ई. में महाराष्ट्र के पूना शहर के पास, से गाँव खेड़ा’ में जन्म लिया था। इनके पिता का नाम पंडित हरिन था। ‘राजगुरु’ एक उपाधि थी जो हरिनारायण जी के पिता को साहू जी महाराज से मिली थी।
क्रांतिकारी राजगुरु का पूरा नाम ‘शिवराम हरि राजगुरु’ था। जब शिवराम केवल 6 साल की आयु के थे, तब इनके पिता चल बसे। अब परिवार के भरण-पोषण का उत्तरदायित्व शिवराम के बड़े भाई दिनकर राजगुरु के कंधों । पर आ गया। उन्हें राजगुरु परिवार को चलाने के लिए पूना शहर जाकर नौकरी । करनी पड़ी। दिनकर ने अपने छोटे भाई शिवराम की शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध भी पूना शहर की एक पाठशाला में कर दिया। यह पाठशाला मराठी थी।
शिवराम इंसमें संस्कृत पढ़ते थे और साथ-साथ व्यायाम का भी अभ्यास करते थे। उन्हें खेल और व्यायाम अत्यंत प्रिय था। उनके बड़े भाई दिनकर उन्हें पढ़ा-लिखाकर जिम्मेदार व्यक्ति बनाना चाहते थे। शिवराम की अपने बड़े भाई से बनती नहीं थी। वे स्वतंत्र ख्यालों के थे, जबकि उनके बड़े भाई दिनकर उन्हें नौकरी एवं पारिवारिक जिम्मेदारियों में बाँध देना चाहते थे। एक दिन शिवराम चुपचाप घर छोड़कर चले गए। उस समय उनके ।
पास केवल 9 पैसे थे। रात में वे पूना रेलवे स्टेशन पर ही सोए। सुबह होते ही। पैदल यात्रा शुरू की और नासिक जा पहुँचे। नासिक में वे एक धर्मशाला में रहने । लगे। उन दिनों सारे भारत देश में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति की ज्वाला भड़क । रही थी। पुलिस जगह-जगह क्रांतिकारियों की धरपकड़ कर रही थी। शिवराम का अकारण ही पुलिस के दमन का शिकार बनना पड़ा। अंग्रेजों के प्रति घृणा 148 / 101 महान भारतीय की भावना को धारण कर शिवराम ने नासिक छोड़ दिया।
वे झाँसी मन न लगने पर कानपुर चले आए। कानपुर के बाद राजगुरु लखनऊ सभी आ गए और अहिल्या घाट पर रहने लगे। यहाँ उन्होंने संस्कत की गए। वहाँ मन न लगने शिक्षा प्राप्त की। एक दिन वे काशी से पुनः कानपुर चले आए और गणेशशंकर विद्यार्थी सम्पर्क में आए। उन दिनों सरदार भगत सिंह, विद्यार्थी जी के ‘प्रताप’ कार्यालय। में काम करते थे।
भगत सिंह से मिलकर राजगुरु को राष्ट्रभक्ति के पथ पर। आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली और वे भगत सिंह के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों। में शामिल हो गए। भगत सिंह ने सन् 1926 में “नौजवान भारत सभा” नामक एक क्रांतिकारी संगठन बनाया। सन् 1928 ई. में राजगुरु और भगत सिंह ने साइमन कमीशन का विरोध किया।
लाहौर में बम फैक्ट्री बनाने के आरोप में सन् 1929 ई. को पूना में राजगुरु को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें भगत सिंह और राजगुरु के साथ ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांडर्स को गोली मारने के आरोप में फाँसी की सजा सुनाई गई।
फाँसी का दिन 23 मार्च, 1931 निश्चित किया गया। फाँसी वाले दिन राजगुरु अपने क्रांतिकारी साथी भगतसिंह और सुखदेव के साथ आजादी का गीत गाते हुए जेल की कोठरियों से बाहर निकले। इन्होंने चेहरे पर काला कपड़ा पहनने से मना कर दिया और तीनों वीर शाम 7.15 बजे स्वतंत्रता की बलिवेदी पर न्यौछावर हो गए।
Top 20 freedom fighters of India [04 सरदार भगत सिंह]
04 सरदार भगत सिंह

सरदार भगत सिंह हमारी इस top 20 freedom fighters of India सूची मे No.04 पर आते है। सरदार भगत सिंह का जन्म लायलपुर शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर बंगा नामक गाँव में हुआ था। आज लायलपुर शहर पाकिस्तान के फैसला शहर के नाम से जाना जाता है। इस गाँव में 27 सितम्बर, सन् 1907 ई. शनिवार के दिन भगत सिंह का जन्म हुआ था।
जिस समय भगत सिंह का जन्म हुआ था, उस समय इनके पिता किशन सिंह तथा चाचा अजीत सिंह जेल में बंद थे। इन दोनों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत की थी। जब पिता किशनसिंह को जेल में अपने बच्चे के पैदा होने का। समाचार मिला तो उन्होंने अपने साथी बंद्रा सिंह को अपने गले लगा लिया।
सरदार किशन सिंह को उस दिन 50 रुपये की जमानत पर मांडले जेल से रिहा कर दिया गया। एक दिन क्षय रोग के कारण किशन सिंह के बड़े बेटे जगत सिंह की मृत्यु हो गयी। सरदार भगत सिंह बचपन से पढ़ाई में होशियार थे। जगत सिंह की मृत्यु से निराश हो सरदार किशन सिंह बंगा गाँव से नवा कोट गाँव चले गए।
यह गाँव लाहौर शहर के पास था तथा किशन सिंह की उस गाँव में पैतृक जमीन भी थी। सरदार किशन सिंह का परिवार आर्य समाज को मान्यता देता था, इसलिए उन्होंने भगत सिंह को “एंग्लो वैदिक स्कूल” में भर्ती कराया। इसी स्कल से भगत सिंह ने मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके बाद भगत सिंह ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया।
एक दिन कानपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। भगत सिंह अपने कॉलेज। के यशपाल और सुखदेव आदि मित्रों के साथ इस अधिवेशन में भाग लेने गए। उनके मन में अब देश को आजाद कराने की भावना जन्म ले चुकी थी। भगत सिंह के एक अध्यापक जयचंद विद्यालंकार अंग्रेजी शासकों के विरुद्ध गुप्त रूप से प्रचार करते थे। जब भगत सिंह उनके सम्पर्क में आए तो उन्हें।
भगत सिंह अपने मित्र यशपाल और सुखदेव के साथ मिलकर क्रांतिकारी योजनाएँ बनाने लगे। सन् 1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट बिल पास किया तो उसके। निरोध में पूरे देश में आन्दोलन उठ खड़ा हुआ। गांधी जी ने असहयोग आंदोलन किया। भगत सिंह ने भी इस आन्दोलन में भाग लिया। सन् 1923 ई. में भगत सिंह ने एफ.ए. की परीक्षा पास की और बी.ए. में दाखिला लिया।
उनके माता-पिता उनकी शादी करना चाहते थे लेकिन भगत सिंह ने शादी से मना कर दिया। साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपत राय पर अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स ने बर्बरतापूर्ण लाठियाँ बरसाई थीं। इसके कारण लाला की मृत्यु हुई।
भगत सिंह और उनके साथियों ने सांडर्स पर गोली चलाकर उसे मार डाला। इसके बाद उन्होंने आगरा में बम बनाने का काम शुरू किया और 8 अप्रैल, 1929 ई. को असेम्बली में बम फेंका। भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया तथा 23 मार्च, 1931 ई. में अंग्रेज सरकार ने उनको फाँसी पर चढ़ा दिया।
Top 20 freedom fighters of India [05 सुभाष चन्द्र बोस]
05 सुभाष चन्द्र बोस
सुभाष चन्द्र बोस हमारी top 20 freedom fighters of India सूची मे No.05 पर आते है। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई. को दिन के बजकर 35 मिनट पर हुआ था। उनका जन्म उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था।
उस समय बंगाल, बिहार और उड़ीसा-संयुक्त रूप से एक ही प्रांत के अंग थे। सुभाष के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती बोस था। ये अपने पिता के छठवें पुत्र तथा 9वीं संतान थे। उनके बड़े भाई का नाम शरतचन्द्र बोस था। शारदा देवी उनके घर की सेविका थीं।
सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस ने आजीविका के लिए पहले अध्यापन का कार्य किया और बाद में कटक जा बसे। यहाँ उन्होंने वकालत शुरू की और शीघ्र ही वे कटक के सफल वकील बन गए। सन् 1912 ई. में उन्हें बंगाल विधानपरिषद का सदस्य बनाया गया तथा उन्हें ‘रायबहादुर’ की उपाधि दी गयी।
वे दानशील स्वभाव के थे। सन् 1901 ई. में बालक सुभाष ने प्रोटेस्टंट यूरोपीयन स्कूल में प्रवेश लिया। यह एक मिशनरी स्कूल था। सुभाष ने यहाँ पाया कि भारतीय छात्रों के साथ स्कूल के अंग्रेज छात्र बुरा व्यवहार करते हैं। सन् 1909 ई. में माध्यमिक शिक्षा के लिए सुभाष को कटक के रैविनशा कॉलेजिएट स्कूल में दाखिल करवाया गया। इसी विद्यालय से सन् 1909 ई. में सुभाष ने मैट्रिक परीक्षा पास की। सुभाष, स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित हुए और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानने लगे।
सन् 1913 ई. में सुभाष ने हाई स्कूल की परीक्षा दूसरे। स्थान से उत्तीर्ण की उन्हें 700 में से 611 अंक मिले। इसके बाद सुभाष ने कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया। सन् 1914 ई. में सुभाष सत्य की खोज में हिमालय, तीर्थ मंदिरों, हरिद्वार, मथुरा, बनारस, वृन्दावन, दिल्ली, आगरा में घूमे। उन्होंने गुरुकुलों को छान मारा लेकिन उन्हें कोई मार्गदर्शक गुरु न मिला।
सन् 1915 ई. में 18 वर्षीय सुभाष ने दर्शन शास्त्र विषय से बी. ए. ऑनर्स में प्रवेश कर कॉलेज में सुभाष ने “यू ब्लैक मंकी” कहने वाले प्रोफेसर ई. एफ औटन कर दी और कॉलेज से निकाल दिए गए। सन् 1917 ई. में उन्होंने मीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया और बी. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।
सन 1919 ई. में उनके पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा हेतु इंग्लैण्ड भेज दिया। सन 1920 ई. में वे आई.सी.एस. परीक्षा में प्रथम आए लेकिन देशसेवा के लिए सभाष ने 1921 ई. में आई.सी.एस. से त्यागपत्र दे दिया और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के लिए जून 1921 ई. में इंग्लैण्ड से भारत आ गए।
24 अक्टूबर, 1924 ई. को उन्हें सरकार विरोधी गतिविधियों के कारण गिरफ्तार किया गया। सन् 1950 ई. में उन्होंने एक नई ‘डेमोक्रेटिक पार्टी’ बनाई। पुनः उन्हें गिरफ्तार किया। गया। इस बार वे एक वर्ष जेल में रहे।
सन् 1941 ई. में सुभाष को नजरबंद किया गया लेकिन वे पहरेदारों की आँखों में धल झोंककर भाग निकले। पेशावर के मार्ग से होते हुए काबुल गए। इसके बाद वे जर्मनी पहुँचे। जापान में “आजाद हिन्द फौज” की स्थापना की। सन 1943 को इस फौज के साथ वे रंगून के लिए रवाना। हुए। सन् 1945 ई. में रंगून पर ब्रिटिश सरकार का अधिकार हो गया।
16 अगस्त, 1945 के दिन सुभाष वायुयान से टोकियो के लिए रवाना हुए। इसके बाद उनका कोई पता न चल सका।
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