Raja Ram Mohan Roy का जीवन, शिक्षा । who was raja ram Mohan Roy, raja ram Mohan Roy biography, about raja ram Mohan Roy, raja ram Mohan Roy information, raja ram Mohan Roy in Hindi.

नमस्कार दोस्तो इस लेख मे हम Raja Ram Mohan Roy की biography, और उनके जीवन के संघर्षो के बारे मे चर्चा करेंगे। जानेगे कि उन्होने हमारे समाज के लिए कितने महान कार्य किए। ये पूरी जानकारी hindi भाषा मे होगी।
Who was Raja Ram Mohan Roy [ राजा राममोहन राय ]
अगर हम बात करे कि Who was Raja Ram Mohan Roy तो Raja Ram Mohan Roy भारत के एक महान समाज सुधारक थे। राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई, सन् 1772 ई. को पश्चिम बंगाल के राधानगर गाँव में हुआ था। इन्होंने एक कुलीन ब्राह्मण परिवार में जन्म लिया था। भारतीय संस्कृति और कर्मकाण्ड उन्हें धरोहर के रूप में मिले थे।
ये जन्म से कट्टर वैष्णव थे और बचपन में भागवत का पाठ करके ही भोजन ग्रहण करते थे। लेकिन जब उन्होंने भारत के हिन्दू धर्म की गिरती हुई हालत को देखा तो इनका मन बदलने लगा इन्हें हिन्दू धर्म में व्याप्त कर्मकाण्ड, पाखण्ड, कुरीतियाँ और मूर्तिपूजा आदि सब गलत लगने लगा।
राममोहन राय के पिता श्री रामकान्त राय ने इनके धर्म विरोधी विचारों का विरोध किया। पिता-पुत्र में मनमुटाव रहने लगा। जब राममोहन राय ने मूर्ति पूजा का विरोध करना नहीं छोड़ा तो इनके पिता ने इन्हें ‘अधर्मी’ कहकर घर से निकाल दिया। उस समय राममोहन राय केवल 16 वर्ष की आयु के थे। अपने घर से निकलकर राममोहन राय भारत के विभिन्न प्रांतों में घूमने लगे।
Raja Ram Mohan Roy Biography, About, Information [समाज सुधारक कार्य]
Raja Ram Mohan Roy की biography (जीवनी) सबसे प्रभाव शाली है। इन्होने हिन्दू धर्म के सम्बन्ध में काफी समय तक गहन मनन-चिंतन करने के बाद राममोहन राय इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि जब तक हिन्दू धर्म का नव संस्कार, परिष्कार या सुधार नहीं किया जाएगा, तब तक यह धर्म ईसाई आदि अन्य धर्मों के आक्रमण से अपनी रक्षा नहीं कर सकेगा।
शनैः-शनैः राममोहन राय ने मूर्तिपूजा का विरोध करना शुरू कर दिया। मूर्तिपूजा के दोष दर्शाने के लिए इन्होंने ‘हिन्दुओं की पौत्तलिक धर्म प्रणाली’ नामक एक पुस्तक लिखी।पंजाब में इन्होंने गुरुमुखी भाषा सीखी और सिक्ख धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया। इसके बाद दादू और कबीर के धर्म-सिद्धांतों को पढ़ा। अन्त में उनकी इच्छा बौद्ध धर्म का रहस्य जानने की हुई और वे हिमालय पार करके तिब्बत जा पहुंचे। वहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रंथों का अध्ययन किया।
तिब्बत से लौटने पर इनके पिता ने इनको घर में रहने की अनुमति दे दी परन्तु कुछ समय बाद इनके पिता का निधन हो गया और ये धर्म सुधार के कार्यों को और भी तेजी के साथ करने लगे। ये मूर्ति पूजा का खंडन करके ब्रह्मज्ञान का प्रचार किया करते थे, इसलिए इनके आस-पड़ोस के लोग तथा अन्य अंधविश्वासी जन इनके विरोधी बन गए थे।
इनके गाँव के पास के गाँव में रामजय नामक व्यक्ति रहता था। वह गाँव का मुखिया था। उसने राममोहन राय को परेशान करना शुरू किया। वह रात में इनके घर के सामने कूड़ा-कचरा, मैला फिकवा देता था, गाय की हड्डियाँ इनके घर में फेंक देता था। राममोहन को उसकी मूर्खता पर हँसी आती थी। राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) की माता का नाम फूल ठकुराती था।
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उन्होंने राममोहन को घर से बाहर निकाल दिया ताकि घर के लोगों को राममोहन के विरोधियों का सामना न करना पड़े। राममोहन ने गाँव के बाहर, श्मशान के पास अपने लिए अलग से मकान बनवा लिया और उसमें रहने लगे। घर के द्वार पर “ओउम् तत्सत् एकमेवाद्वितीयम्” नामक वेदांत वाक्य मोटे अक्षरों में लिखवा दिया।

Raja Ram Mohan Roy against सती प्रथा
राजा राममोहन राय सती प्रथा के विरोधी थे। उनके बड़े भाई की विधवा को उनकी आँखों के सामने बलपूर्वक सती किया गया था। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरोध में बंगाली तथा अंग्रेजी भाषा में तीन पुस्तकें लिखकर मुफ्त बँटवाईं। उनकी कोशिशों के कारण लार्ड वैण्टिक ने सती प्रथा के विरोध में कानून बनाकर सती प्रथा पर रोक लगा दी।सती प्रथा को समाप्त कराने के बाद राजा जी ने बहुविवाह का विरोध करना प्रारंभ किया।
Raja Ram Mohan Roy द्वारा की गई स्थापना
Raja Ram Mohan Roy ने अपने जीवन काल मे और भारत के हित मे अनेको कार्य किए। इन्होने हिंदू धर्म के विकाश के अनेको संस्थाओ, समाज आदि की स्थापना की। सन् 1815 ई. में इन्होंने ‘आत्मीय सभा’। नामक संस्था की स्थापना की। इस सभा में प्रति सप्ताह वेद पाठ होता था और ब्रह्मसंगीत गाए जाते थे। सन् 1828 ई. में राजा राममोहन राय ने ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना की।
भारत में राजा जी ने धर्म के कई महान कार्य किए। उनकी इच्छा थी कि इंग्लैण्ड जाकर अंग्रेजों को भारत में धर्म सुधार कार्यों के बारे में बता आएँ। फलस्वरूप ये इंग्लैण्ड गए और वहाँ 3 वर्ष रहकर भारत के लिए हितकारी कार्यों को पूरा किया। इनकी कोशिशों से इंग्लैण्ड की सरकार ने भारत में शिक्षा-प्रचार की उचित व्यवस्था के लिए एक कानून बनाया।
11 सितम्बर, 1833 ई. को राजा राममोहन राय ने इंग्लैण्ड के अनेक विद्वानों के सम्मुख खड़े होकर भारत की धर्मनीति, राजनीति और भविष्य के सम्बन्ध में तीन घण्टे तक व्याख्यान दिया। दूसरे दिन उनमें थकावट के चिह्न दिखाई देने लगे। बखार से ग्रसित होकर वे बिस्तर पर पड़ गए। इंग्लैण्ड के डॉक्टरों ने उनकी पूरी देखभाल तथा चिकित्सा की।
कुमारी कारपेंटर तथा कुमारी हेअर आदि ने बडी लगन से दिन-रात उनकी सेवा-सुश्रुषा की। लेकिन उनका बुखार कम न हो सका। दिन पर दिन उनके शरीर की दुर्बलता बढ़ती गयी और 27 सितम्बर, सन् 1833 ई. को उन्होंने परलोक गमन किया।
राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) को आज भी भारत के एक महान सुधारक के रूप में याद किया जाता है। इन्होंने मूर्तिपूजा तथा सती प्रथा के अलावा बाल-विवाह, अशिक्षा, जाति-पाँति तथा भारत में फैली अनेक बुराइयों का प्रबल विरोध किया था। भारतीय संस्कृति के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा भावना थी।
वे चाहते थे कि भारतवासी धर्म के सच्चे स्वरूप को पहचानें तथा धर्म के नाम पर फैलने वाले ढकोसले, आडंबर, पाखंड तथा अंधविश्वासों से दूर रहें। वे भारत में फैली हर उस कुप्रथा तथा कुरीति को मिटा देना चाहते थे, जो भारतीयों के जीवन के पतन के लिए जिम्मेदार थीं।
FAQ on Raja Ram Mohan Roy राजा राममोहन राय
What was Raja Ram Mohan Roy famous for?
Ans. राजा राममोहन राय सती प्रथा के विरोधी थे | उनकी कोशिशों के कारण लार्ड वैण्टिक ने सती प्रथा के विरोध में कानून बनाकर सती प्रथा पर रोक लगा दी।
Was Raja Ram Mohan Roy a Brahmin?
Ans.ये जन्म से कट्टर वैष्णव थे और बचपन में भागवत का पाठ करके ही भोजन ग्रहण करते थे
Who was the first sati?
Ans. The Eran pillar of Goparaja, from the reign of the Gupta king Bhanugupta.
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